शाम आज उदास था !! था या थी ,ये एक सवाल है आज उसके लिए.... वोमेन'स डे है सो आप सोच रहे होगे की आज वो अपने आपको नारीत्व को समर्पित करना चाहता है (चाहती है) , पर नहीं वो तो पहले से ही थी !!गुलज़ार जी की कालजयी रचना " वो शाम कुछ अजीब थी" शायद आपको याद दिलाये की शाम का gender female ना की male !! खैर ये विषय अब और रोमांचक हो चला है अब जबकि women's bill pass होने की कगार पर है !! सभी महिलाएं खुश हैं , नारियां (मेरा मतलब उन स्त्रियों से है जो महिलायें की ओर हैं ) बहुत ज्यादा ही खुश हैं! महिलाओं का कहना है की अब हमारी उम्र निकल गयी , हम तो घर की संसद में ही सही हैं यहाँ हमारी ही चलती है !पर नारियां जो अपने आपको पुरुष का विकल्प साबित करने में लगी हुई हैं वे इस बात को लेकर ज्यादा उत्साहित हैं की अब उनका competetion केवल और केवल महिलाओं से है!!
शाम जो आज से पहले female थी अपना gender change करवाना चाहती है ! और अब तो बोबी डार्लिंग की तरह बिना change करवाए ही अपने आपको changed मानती है !वैसे शाम पहले से ही दिन और रात के बीच का रह चुका है ! दिन के पुरुषत्व को ललकारने के बजाय वो एक मां की तरह लोगों को relax देने में विश्वास रखता था ताकि लोग अपने आपको रात की काली गोद में (आप इसे सेक्स से relate कर सकते हैं ) जो दुविधाओं और मानसिक यातनाओं से घिरी हुई है , में भेज सके !वो नारी का मत्रीस्वरुप है और शायद यही हमारे वेदों और पुराणों में विदित है !पर आज नारी अपने आपको माँ से ज्यादा girlfriend मानने में विशवास रखती है (शायद लिविंग में रहने वालों को मेरी बातें पसंद ना आयें ) वो माँ बनने का "झंझट" ही नहीं पालना चाहती ! शाम की गोद में बैठी महिलायें जो अपने बच्चों के साथ involve रहती थीं वो आज अपना अलग ही विषयों पे विचार कर रही हैं क्यूंकि अब उन्हें administration में जाना है , parliament में जाना है ! पुरुष अब अलग ही परिचर्चा कर रहे हैं पहले वो समाज के तत्सम्पर्क विषयों को परिलक्षित करते थे पर अब उनके पास अपने आस्तित्व को लेकर ज्यादा चिंता है !पुरुष अब तथाकथित सामाजिक क्रांतिकारियों ( महिलाओं ) से संघर्ष की रूपरेखा तैयार कर रहा है ! ऐसा करने में वो भूल रहा है की reservation नाम का postulate जिसे शयद Einsteinian वर्णित करना भूल गए थे , reservation जो की frame of references से अब effect नहीं होता क्यूंकि अब सारे reservation राष्ट्रीय हो चुके हैं , उन्हें संघर्ष से अलग कर रहा है ! शाम पुरुषों को देखकर व्याकुल हो चला है वो उनकी नीरेहिता पे शर्मशार है और हंस भी रहा है !!
सहसा शाम की नजर पार्क में खेलते बच्चों पैर जाती है male, female से दूर ये बच्चे शायद आपस में इस तरह लीन हो चुके हैं की वो पुरुष और नारी के भेद को मिटा चुके हैं !उन्हें ये भी नहीं पता की आज से दस पंद्रह साल बाद उनके इस व्यवहार को लोग अलग नाम देंगे ,पुनह महिलाओं के पास एक मुद्दा होगा और पुरुषों के पास संघर्ष का विषय ! शाम इन बच्चों जैसा बनने का निर्णय लेकर अगली शाम का इन्तजार करता है और अपने निर्णय को गुलजार जी की एक नयी रचना को समर्पित करता है !"शाम तो बच्चा है जी"
शाम जो आज से पहले female थी अपना gender change करवाना चाहती है ! और अब तो बोबी डार्लिंग की तरह बिना change करवाए ही अपने आपको changed मानती है !वैसे शाम पहले से ही दिन और रात के बीच का रह चुका है ! दिन के पुरुषत्व को ललकारने के बजाय वो एक मां की तरह लोगों को relax देने में विश्वास रखता था ताकि लोग अपने आपको रात की काली गोद में (आप इसे सेक्स से relate कर सकते हैं ) जो दुविधाओं और मानसिक यातनाओं से घिरी हुई है , में भेज सके !वो नारी का मत्रीस्वरुप है और शायद यही हमारे वेदों और पुराणों में विदित है !पर आज नारी अपने आपको माँ से ज्यादा girlfriend मानने में विशवास रखती है (शायद लिविंग में रहने वालों को मेरी बातें पसंद ना आयें ) वो माँ बनने का "झंझट" ही नहीं पालना चाहती ! शाम की गोद में बैठी महिलायें जो अपने बच्चों के साथ involve रहती थीं वो आज अपना अलग ही विषयों पे विचार कर रही हैं क्यूंकि अब उन्हें administration में जाना है , parliament में जाना है ! पुरुष अब अलग ही परिचर्चा कर रहे हैं पहले वो समाज के तत्सम्पर्क विषयों को परिलक्षित करते थे पर अब उनके पास अपने आस्तित्व को लेकर ज्यादा चिंता है !पुरुष अब तथाकथित सामाजिक क्रांतिकारियों ( महिलाओं ) से संघर्ष की रूपरेखा तैयार कर रहा है ! ऐसा करने में वो भूल रहा है की reservation नाम का postulate जिसे शयद Einsteinian वर्णित करना भूल गए थे , reservation जो की frame of references से अब effect नहीं होता क्यूंकि अब सारे reservation राष्ट्रीय हो चुके हैं , उन्हें संघर्ष से अलग कर रहा है ! शाम पुरुषों को देखकर व्याकुल हो चला है वो उनकी नीरेहिता पे शर्मशार है और हंस भी रहा है !!
सहसा शाम की नजर पार्क में खेलते बच्चों पैर जाती है male, female से दूर ये बच्चे शायद आपस में इस तरह लीन हो चुके हैं की वो पुरुष और नारी के भेद को मिटा चुके हैं !उन्हें ये भी नहीं पता की आज से दस पंद्रह साल बाद उनके इस व्यवहार को लोग अलग नाम देंगे ,पुनह महिलाओं के पास एक मुद्दा होगा और पुरुषों के पास संघर्ष का विषय ! शाम इन बच्चों जैसा बनने का निर्णय लेकर अगली शाम का इन्तजार करता है और अपने निर्णय को गुलजार जी की एक नयी रचना को समर्पित करता है !"शाम तो बच्चा है जी"
